खजुराहो की कलाकारी देखिए…समलैंगिक विवाह की मान्यता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में तर्क
1 min readसुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह की मान्यता की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि हमारे पुराने ग्रंथों और कलाकृतियों को देखने पर पता चलता है कि पहले की सोच आगे थी
सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग को लेकर सुनवाई बुधवार को फिर शुरू हुई। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच इस मामले में 20 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। सुनवाई के दौरान पक्ष और विपक्ष दोनों ने ही खूब तर्क रखे। सरकार इस तरह के विवाह के विरोध में है। वहीं याचिकाकर्ताओं के पक्ष से वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि संविधान भी कहता है कि सभी को समानता का अधिकार है। ऐसे में प्यार को शादी में बदलने का अधिकार सबको मिलना चाहिए।
उन्होंने कहा, दूसरी तरफ से कहा जा रहा है कि पुरुष और महिला के मिलन से ही जन्म हो सकता है। यह प्रकृति का नियम है। वे कहते हैं कि समलैंगिक नॉर्मल नहीं हैं। लेकिन क्या वही नॉर्मल होता है जो कि बहुसंख्यक होता है। कानून यह नहीं कहता बल्कि यह केवल एक सोच है। उन्होंने कहा कि इस तरह की सोच का जन्म 18वीं शताब्दी में हुआ लेकिन अगर भारतीय ग्रंथों और रचनाओं पर गौर करें तो सैकड़ों साल पहले दीवारों पर चित्र उकेर दिए गए थे जिसमें समैलिंगकता को दिखाया गया था। इसका मतलब है कि हमारी परंपरा में हमारी सोच बहुत आगे थी। यह रूढ़िवादी नहीं हुआ करती थी।
रोहतगी ने खजुराहो की कला का उदाहरण देते हुए कहा कि पॉपुलर मोरालिटी और संवैधानिक मोरालिटी के बीच में यही फर्क है। अगर किसी बात को कोर्ट सही ठहराता है तो संवैधानिक नैतिकता ही आदत में शुमार हो जाएगी। वहीं जज एस रविंदर भट्ट ने रोहतगी से कहा, आप एक तर्क में महिला और पुरुष में भेद की बात कर रहे हैं और एक तर्क में जेंडर न्यूट्रल बना रहे हैं। आखिर आप चाहते क्या हैं? क्या आप ऐसी ही बातों को रख रहे हैं जो कि आपको सूट करती हैं।
रोहतगी के बाद अभिषेक मनुसिंघवी ने याचिकाकर्ताओं की तरफ से तर्क देना शुरू किया। उन्होंने कहा कि यहां मुद्दा चुनने के अधिकार का है। इसका रास्ता वैवाहिक संबंध से होकर जाता है। पहचान की परवाह किए बिना प्यार को शादी में बदलने की मांग हो रही है। उन्होंने कहा, अगर समलैंगिक विवाह को मान्यता मिलती है तो यह बहुत बड़ी जीत होगी।