ममता के साथ भी आ जाएं नीतीश, हेमंत और अखिलेश तो बीजेपी का क्या बिगड़ेगा? जानें पूरा समीकरण
1 min readनीतीश कुमार की तरह ममता बनर्जी ने 2024 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विजय रथ को रोकने के लिए विपक्षी एकजुटता का आह्वान किया है। हालांकि, उन्होंने पश्चिम बंगाल में ही वर्षों तक राज करने वाली लेफ्ट पार्टियों के साथ-साथ कांग्रेस से भी परहेज किया है। ममता जब विपक्षी एकता की बात कर रही थीं तो उन्होंने सिर्फ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव का नाम लिया। ममता बनर्जी ने 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के लिए जिन विपक्षी दलों के साथ हाथ मिलाने की बात कही है, उनका जनाधार अपने राज्यों के बाहर नहीं है। भाजपा भी लगातार यह बात कहती आ रही है कि किसी एक राज्य में तो महागठबंधन का फॉर्मूला चल सकता है, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर इसकी व्यवहारिकता नहीं दिखती है।
ममत बनर्जी, नीतीश कुमार, अखिलेश यादव और हेमंत सोरेन जैसे नेता अगर चुनाव से पहले एकक गठबंधन बना भी लें तो इससे भाजपा की ताकत कमजोर नहीं होने वाली है। ऐसा इसलिए कि झारखंड में हेमंत सोरेन जरूर मजबूत हैं, लेकिन वहां ममता बनर्जी या अखिलेश यादव का कोई जनाधार नहीं है। ऐसे ही यूपी में अखिलेश यादव के पास अपने वोट बैंक है, लेकिन यहां ममता बनर्जी, नीतीश कुमार और हेमंत सोरेन जैसे नेताओं का आधार नहीं है। हालांकि, लोकसभा चुनाव के परिणाम में एगर बीजेपी पिछड़ती है तो इनके साथ आने पर नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद की कुर्सी से दूर हो सकते हैं।
नीतीश का नाम, लेकिन लालू यादव से परहेज
ममता बनर्जी ने टीएमसी नेताओं और कार्यकर्ताओं के अपने संबोधन में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का तो नाम लिया, लेकिन उन्होंने लालू यादव का नाम लेने से परहेज किया, जो कि आरजेडी के मुखिया हैं। बिहार में नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू इन दिनों आरजेडी के सहयोग से सत्ता चला रही है। कांग्रेस का भी इसमें साथ है। इस महागठबंधन में आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी है। दोनों ही दलों को बिहार से बाहर कोई ठोस जनाधार नहीं है। जेडीयू के उरुणाचल प्रदेश और मणिपुर में कुछ विधायक जरूर जीतते हैं, लेकिन हिंदी पट्टी में उनकी स्थिति कोई अच्छी नहीं है। आरजेडी का पूरा फोकस बिहार पर ही केंद्रित रहा है।