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Supreme Court News: ‘सीमेंट और आटे को भी हलाल सर्टिफिकेशन की जरूरत है’, सुप्रीम कोर्ट में सॉलिसिटर जनरल ने बताई हैरानी की वजह

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Supreme Court News: सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में हलाल से जुड़े एक मामले में यूपी सरकार को प्रतिनिधित्व करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (Solicitor General Tushar Mehta) ने न्यायालय को बताया कि वह यह देखकर “हैरान” रह गए कि मीट के अलावा अन्य प्रोडक्ट्स को भी हलाल के रूप में सर्टिफाई किया गया है, तथा यह प्रमाणित किया गया है कि ये प्रोडक्ट्स इस्लामी कानून की जरूरतों को पूरा करते हैं।

उत्तर प्रदेश में राज्य सरकार द्वारा हलाल सर्टिफाई प्रोडेक्ट्स पर लगाए गए बैन के खिलाफ याचिका का जवाब देते हुए सॉलिसिटर जनरल ने कहा, “जहां तक ​​हलाल मीट आदि का सवाल है, किसी को कोई आपत्ति नहीं हो सकती… यहां तक ​​कि इस्तेमाल होने वाला सीमेंट भी हलाल-सर्टिफाई होना चाहिए। इस्तेमाल होने वाली सरिया (लोहे की छड़ें) भी हलाल-सर्टिफाई होनी चाहिए… पानी की बोतलें भी हलाल-सर्टिफाई होनी चाहिए…”

उन्होंने कोर्ट को यह भी बताया कि एजेंसियों ने इस तरह के सर्टिफिकेशन से “कुछ लाख करोड़ रुपये” कमाए हैं।

याचिका दायर करने वाले पक्ष की तरफ से पेश हुए सीनियर वकील एम आर शमशाद ने कहा कि केंद्र की पॉलिसी में हलाल को विस्तृत रूप से परिभाषित किया गया है, लेकिन यह सिर्फ नॉन वेजिटेरियन फूड के बारे में नहीं है।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने यह भी तर्क दिया कि हलाल सर्टिफिकेशन की वजह से दाम बढ़ रहे हैं और कोर्ट को इस सवाल पर विचार करना पड़ सकता है कि जो लोग हलाल का पालन नहीं करते, उन्हें ऊंची कीमत वाली वस्तुएं खाने के लिए क्यों मजबूर किया जाना चाहिए।

‘हलाल सर्टिफाई प्रोडेक्ट्स का इस्तेमाल मैटर ऑफ चॉइस’

हालांकि याचिकाकर्ताओं की तरफ से कहा गया कि हलाल सर्टिफाई प्रोडेक्ट्स का इस्तेमाल मैटर ऑफ चॉइस है।

आपको बता दें कि पांच जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड और जमीयत उलमा महाराष्ट्र द्वारा दायर याचिकाओं पर राज्य सरकार को नोटिस जारी किया। इस नोटिस में फूड सेफ्टी एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन, उत्तर प्रदेश द्वारा जारी अधिसूचना की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी। यूपी सरकार ने इस अधिसूचना के जरिए “राज्य के भीतर हलाल सर्टिफिकेशन वाले फूड प्रोडेक्ट्स की मैन्युफैक्चरिंग, स्टोरेज, सेल और डिस्ट्रिब्यूशन पर प्रतिबंध लगाया था”।

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