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ISRO ने लॉन्च किया ‘नाविक’ सैटेलाइट, पुख्ता सुरक्षा को रखेगा दुश्मन पर नजर

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ISRO: अंतरिक्ष एजेंसी ने दूसरी पीढ़ी की नौवहन उपग्रह श्रृंखला के प्रक्षेपण की योजना बनाई है जो नाविक (जीपीएस की तरह भारत की स्वदेशी नौवहन प्रणाली) सेवाओं की निरंतरता सुनिश्चित करेगी।

ISRO ने लॉन्च किया 'नाविक' सैटेलाइट, पुख्ता सुरक्षा को रखेगा दुश्मन पर नजर

धरती से लेकर अंतरिक्ष तक भारत की उपलब्धियों की फेहरिस्त लंबी होती जा रही है। सोमवार को इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन यानी ISRO ने सफलतापूर्वक नेविगेशन सैटेलाइट NVS-1 को लॉन्च कर दिया है। खास बात है कि यह अंतरिक्ष यान नेविगेशन विद इंडियन कॉन्स्टेलेशन (NavIC) सीरीज का हिस्सा है। इसरो इसके जरिए मॉनिटरिंग और नेविगेशन के क्षेत्र में क्षमता बढ़ाना चाहता है

अंतरिक्ष एजेंसी ने दूसरी पीढ़ी की नौवहन उपग्रह श्रृंखला के प्रक्षेपण की योजना बनाई है जो नाविक (जीपीएस की तरह भारत की स्वदेशी नौवहन प्रणाली) सेवाओं की निरंतरता सुनिश्चित करेगी। यह उपग्रह भारत और मुख्य भूमि के आसपास लगभग 1,500 किलोमीटर के क्षेत्र में तात्कालिक स्थिति और समय से जुड़ी सेवाएं देगा।

इसरो के सूत्रों ने बताया कि प्रक्षेपण के लिए उल्टी गिनती रविवार को सुबह सात बजकर 12 मिनट पर शुरू हो गई थी। खबर है कि 51.7 मीटर लंबा जीएसएलवी अपनी 15वीं उड़ान में 2,232 किलोग्राम वजनी एनवीएस-01 नौवहन उपग्रह को लेकर रवाना हो गया।

इसरो ने कहा कि प्रक्षेपण के करीब 20 मिनट बाद, रॉकेट लगभग 251 किमी की ऊंचाई पर भू-स्थिर स्थानांतरण कक्षा (जीटीओ) में उपग्रह को स्थापित करेगा।

एनवीएस-01 अपने साथ एल1, एल5 और एस बैंड उपकरण ले जाएगा। पूर्ववर्ती की तुलना में, दूसरी पीढ़ी के उपग्रह में स्वदेशी रूप से विकसित रुबिडियम परमाणु घड़ी भी होगी। इसरो ने कहा कि यह पहली बार है जब स्वदेशी रूप से विकसित रुबिडियम परमाणु घड़ी का सोमवार के प्रक्षेपण में इस्तेमाल किया जाएगा।

NavIC एक रीजनल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम है, जिसे ISRO ने तैयार किया है। यह सात सैटेलाइट्स का एक समूह है, जो ग्राउंड स्टेशन्स के साथ मिलकर काम करता है। यह नेटवर्क नेविगेशन से जुड़ी सेवाएं देता है। कहा जा रहा है कि नागरिक उड्डयन के क्षेत्र में बेहतर सेवाएं देने के लिए इस सिस्टम को तैयार किया गया है। यह भारतीय सीमा से आगे तक 1500 किमी के क्षेत्र का नेटवर्क कवर करता है।

खबर है कि 1999 में करगिल युद्ध के दौरान भारत को जब मदद की जरूरत पड़ी, तो अमेरिका के हाथों निराशा मिली। GPS मदद से इनकार किए जाने के बाद भारत अपना नेविगेशन सिस्टम तैयार करने लगा था। इसे 2006 में अप्रूव किया गया और माना जा रहा था कि इसे 2011 तक इसे तैयार कर लिया जाएगा। हालांकि, यह पूरी तरह तैयार 2018 तक हो सका।

कहां होता है इस्तेमाल
इस तकनीक का इस्तेमाल जमीन, हवा और पानी में होने वाले परिवहन पर हो सकता है। साथ ही यह लोकेशन आधारित सेवाओं के लिहाज से भी काफी अहम है। ISRO का मानना है कि दूसरी पीढ़ी की नेविगेशन सैटेलाइट सीरीज में NVS-1 पहला है। यह नाविक की विरासत को बनाए रखेगा और Li बैंड में नई सेवाए देगा।

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