‘तानाशाह’ अपनी हार अंत तक स्वीकार नहीं करते!
1 min read
Banner breaking news, important news, headline in the form of flashing lights police. Vector image.
अभी अंतिम रूप से स्थापित होना बाक़ी है कि डोनल्ड ट्रंप हक़ीक़त में भी राष्ट्रपति पद का चुनाव हार गए हैं। इस सत्य की स्थापना में समय भी लग सकता है जो कि वैधानिक तौर पर निर्वाचित जो बाइडन के चार वर्षों का कार्यकाल 2024 में ख़त्म होने तक जारी रह सकता है। संयोग से भारत में भी उसी साल लोकसभा के चुनाव होने हैं और मुमकिन है तब तक हमारी राजधानी के ‘रायसीना हिल्स’ इलाक़े में नए संसद भवन की भव्य इमारत बनकर तैयार हो जाए।
हस्तांतरण के लिए राज़ी
ट्रंप अभी सिर्फ़ सत्ता हस्तांतरण के लिए राज़ी हुए हैं, बाइडन को अपनी पराजय सौंपने के लिए नहीं। ट्रंप अपनी लड़ाई यह मानते हुए जारी रखना चाहते हैं कि उनकी हार नहीं हुई है बल्कि उनकी जीत पर डाका डाला गया है। मुसीबतों के दौरान ख़ुफ़िया बंकरों में पनाह लेने वाले तानाशाह अपनी पराजय को अंत तक स्वीकार नहीं करते हैं।
हार का कारण
ट्रंप ने पहला ऐसा राष्ट्रपति बनने का दर्जा हासिल कर लिया, जिसने दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति को ‘विचारपूर्वक’ दोफाड़ कर दिया। उन्होंने अमेरिका में ही अपने लिए एक नए देश का निर्माण कर लिया- उस अमेरिका से सर्वथा भिन्न जिसकी 528 साल पहले खोज भारत की तलाश में समुद्री मार्ग से निकले क्रिस्टोफ़र कोलंबस ने की थी।
ट्रंप की हार का बड़ा कारण यह बन गया कि उनके सपनों के अमेरिका में जगह सिर्फ़ गोरे सवर्णों के लिए ही सुरक्षित थी। उनके सोच में अश्वेतों, मुसलिमों, ग़रीबों, महिलाओं और नागरिक अधिकारों के लिए कोई गुंजाइश नहीं थी।
अमेरिका के राष्ट्रपति ने अपने राष्ट्रवाद के नारे को राजनीतिक उत्तेजना के इतने ऊँचे शिखर पर प्रतिष्ठित कर दिया है कि किन्ही कमज़ोर क्षणों में वे उससे अगर अपने को आज़ाद भी करना चाहेंगे तो उनके भक्त समर्थक ऐसा नहीं होने देंगे।