Prakash veg

Latest news uttar pradesh

अब रहना मुश्किल है, अलग व्यवस्था करो; मणिपुर में पहाड़ बनाम घाटी का भी संघर्ष

1 min read

मणिपुर में बीते एक महीने से हिंसा का दौर चल रहा है। मैतेई और कूकी समुदाय आमने-सामने आ गए हैं, लेकिन इसके चलते क्षेत्रीय संघर्ष भी बढ़ा है। राज्य में फैला तनाव घाटी बनाम पहाड़ का मसला बन गया है।

अब रहना मुश्किल है, अलग व्यवस्था करो; मणिपुर में पहाड़ बनाम घाटी का भी संघर्ष

मणिपुर में बीते एक महीने से हिंसा का दौर चल रहा है। मैतेई और कूकी समुदाय आमने-सामने आ गए हैं, लेकिन इसके चलते क्षेत्रीय संघर्ष भी बढ़ा है। राज्य में फैला तनाव घाटी बनाम पहाड़ का मसला बन गया है। इसकी वजह यह है कि राज्य के पहाड़ी इलाकों में कूकी जनजाति के लोगों की बहुलता है, जबकि राजधानी इम्फाल और आसपास के इलाकों में मैतेई हिंदू समुदाय के लोगों की अच्छी खासी आबादी है। मणिपुर हाई कोर्ट ने पिछले दिनों फैसला दिया था कि मैतेई समुदाय के लोगों को एसटी का दर्जा देने पर विचार होना चाहिए। उसके बाद से ही यह विवाद शुरू हुआ है।

कूकी जनजाति के लोग मानते हैं कि यदि मैतेई को एसटी का दर्जा मिला तो फिर वे पहाड़ी क्षेत्रों का रुख करेंगे और इससे उनके अधिकार प्रभावित होंगे। अब इस संघर्ष ने पहाड़ बनाम घाटी का संघर्ष और तेज कर दिया है। कूकी जनजाति के लोगों की मांग है कि इस संकट का समाधान यही होगा कि पहाड़ी इलाकों में उन्हें स्वायत्त प्रशासन दे दिया जाए। इसके अलावा मैतेई समुदाय मानता है कि ऐसा करना ठीक नहीं होगा और पूरे राज्य का प्रशासन एक समान ही रहना चाहिए।

कूकी विधायकों ने तो एक बयान जारी कर कहा कि हमारेलोग अब मणिपुर प्रशासन में नहीं रह सकते। इसकी वजह यह है कि जनजाति समाज के खिलाफ दुष्प्रचार और नफरत बहुत ज्यादा फैलाई जा चुकी है। यहां तक कि मंत्रियों, पुलिस अधिकारियों, अफसरों और महिलाओं तक को नहीं छोड़ा जा रहा है। मणिपुर में घाटी बनाम पहाड़ का मसला विकास को लेकर भी रहा है। घाटी वाले इलाके पहाड़ों की तुलना में अधिक विकसित हैं और रोजगार के अवसर भी अधिक हैं। लेकिन पहाड़ी इलाकों का क्षेत्रफल अधिक है, जबकि आबादी का घनत्व कम है। इसके चलते मणिपुर में घाटी के लोगों की राय रही है कि यदि उन्हें एसटी का दर्जा मिले तो वे भी पहाड़ों में बस सकेंगे।

7 कूकी विधायकों ने उठाई स्वायत्त प्रशासन की मांग

पूर्वोत्तर भारत के ऐसे 10 इलाके हैं, जो संविधान की छठी अनुसूची में आते हैं, जिसके तहत जनजाति समुदायों के अधिकारों को संरक्षित किया गया है। हालांकि मणिपुर में ऐसा नहीं है। यहां बड़ी आबादी जनजाति समुदाय की है, लेकिन ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जो छठी अनुसूची के तहत आता हो। अब यह मांग भी जोर पकड़ रही है। यहां तक कि सत्ताधारी भाजपा के भी 7 कूकी विधायकों ने मांग की है कि हिल एरियाज के लिए स्वायत्त प्रशासन की व्यवस्था होनी चाहिए। उनके अलावा 3 अन्य विधायक भी हैं, जो ऐसी ही मांग कर रहे हैं।

क्या है मणिपुर में 90 बनाम 10 फीसदी का बंटवारा

कूकी समुदाय के लोगों का आरोप है कि यह हिंसा मैतेई लोगों ने शुरू की है और उनको लेकर भाजपा सरकार नरम रही है। खुद सीएम बीरेन सिंह भी मैतेई समुदाय से ही आते हैं। एक विधायक ने कहा कि मणिपुर सरकार हमारी रक्षा करने में असफल रही है। इसलिए हमारी मांग है कि कूकी समुदाय की बहुलता वाले पहाड़ी इलाकों के लिए प्रशासन की स्वायत्त व्यवस्था बनाई जाए। वहीं मैतेई समुदाय के लोगों का कहना है कि घाटी में 10 फीसदी इलाका ही आता है और यहां 90 फीसदी लोग बसे हैं। वहीं राज्य का 90 फीसदी हिस्सा पहाड़ी है और यहां सिर्फ 10 पर्सेंट लोग ही रहते हैं।

 

0Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published.

https://slotbet.online/