तापमान बढ़ने से 48 हजार साल पुराना ‘जोम्बी’ वायरस फिर जिंदा, गंभीर बीमारियों का खतरा
1 min readनासा के जलवायु वैज्ञानिक किम्बरली माइनर ने कहा, ‘पर्माफ्रास्ट का बदलता स्वरूप चिंता का विषय है। इसे जमाए रखना बहुत जरूरी है।’ उन्होंने बर्फ से ढके इस वायरस को जोम्बी वायरस का नाम दिया है।
आर्कटिक क्षेत्र में जमीन की एक सतह पर जमी बर्फ के पिघलने से एक नया खतरा पैदा हो गया है। गर्म मौसम के चलते बर्फ तेजी से पिघल रही है। इसकी वजह से 48,500 सालों से जमा पड़ा ‘जोम्बी’ वायरस फिर से सक्रिय हो सकता है। वैज्ञानिकों ने इस बात का अंदेशा जताया है। वैज्ञानिकों का कहना है यह वायरस यदि फैलता है तो जानवरों के साथ ही इंसानों को भी शिकार बना सकता है और उन्हें गंभीर बीमारियां हो सकती हैं। आशंका तो यहां तक है कि यह फैला तो कोरोना वायरस से भी ज्यादा खतरनाक हो सकता है।
नासा के जलवायु वैज्ञानिक किम्बरली माइनर ने कहा, ‘पर्माफ्रास्ट का बदलता स्वरूप चिंता का विषय है। इसे जमाए रखना बहुत जरूरी है।’ उन्होंने बर्फ से ढके इस वायरस को जोम्बी वायरस का नाम दिया है। पर्माफ्रॉस्ट के वातावरण में ऑक्सीजन की कमी होती है। यहां प्रकाश भी प्रवेश नहीं करता है। लेकिन आर्कटिक का तापमान बाकी ग्रह की तुलना में चार गुना तेजी से गर्म हो रहा है। इसके कारण पर्माफ्रॉस्ट की परतें कमजोर हो रही हैं।
आपको बता दें कि किम्बरली ने पहली बार इस वायरस की खोज 2003 में की थी। यह इतने छोटे होते हैं कि इसे खुली आंखों से देखना संभव नहीं है। इसे देखने के लिए लाइट माइक्रोस्कोप का प्रयोग किया जाता है। पर्माफ्रॉस्ट में जमे हुए वायरस का पता लगाने के लिए रूसी वैज्ञानिकों की एक टीम ने 2012 में एक गिलहरी में पाए गए 30,000 साल पुराने बीज ऊतक से एक वाइल्डफ्लावर को पुनर्जीवित किया था। उन्होंने 2014 में वायरस को पुनर्जीवित करने में कामयाबी हासिल की थी। उनकी टीम ने इसे पर्माफ्रॉस्ट से अलग किया। हालांकि, इस दौरान वैज्ञानिकों ने यह कहा था कि यह इंसानों या जानवरों को नुकसान नहीं पहुंचा सकता है।