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बीजेपी का टैगोर प्रेम क्या ढोंग है?

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बंगाल में चुनाव की सरगर्मियाँ तेज़ हैं। बीजेपी और ममता बनर्जी के बीच कशमकश जोरों पर है। अप्रैल-मई में होने वाले चुनाव को लेकर बीजेपी और ममता बनर्जी ने पूरी तरह से कमर कस ली है। अमित शाह का लगातार बंगाल दौरा, रोड शो और उसके जवाब में ममता बनर्जी की बड़ी रैलियाँ यह साबित करती हैं कि मुक़ाबला काँटे का है।

फ़िलहाल इस राजनीति का केन्द्र बीरभूम ज़िले का चर्चित बोलपुर है। यह समूचे बंगाली समुदाय के लिए पुण्यभूमि है। बंगाली सांस्कृतिक जागरण के नायक रवीन्द्रनाथ टैगोर की कार्यस्थली है, बोलपुर। टैगोर ने 1901 में यहीं पर एक स्कूल खोला था। दरख्तों की छाया में स्थापित इस स्कूल को 1907 में शांति निकेतन नाम दिया गया। 1921 में यह विश्वविद्यालय बना और इसका नाम हुआ, विश्व भारती शांति निकेतन। सौ वर्ष पूरे होने पर 24 दिसंबर 2020 को विश्व भारती के शताब्दी समारोह को वीडियो कांफ्रेंसिंग के ज़रिए प्रधानमंत्री मोदी ने संबोधित किया। अपने अभिभाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के राष्ट्रवाद और वैश्विक विजन को याद किया।

सवाल उठता है कि नरेंद्र मोदी और बीजेपी का टैगोर के राष्ट्रवाद और वैश्विक नज़रिए में कोई सरोकार है?

बंगाली समुदाय अपनी संस्कृति के प्रति बहुत भावुक है। शक्ति की आराधना करने वाला बंगाली समाज अपने नायकों को ईश्वर की तरह पूजता है। विधानसभा चुनाव में बंगाली संस्कृति बड़ा चुनावी मुद्दा होगा। लगता है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लंबे समय से इसकी तैयारी कर रहे हैं। गुरुदेव की तरह बढ़ती हुई दाढ़ी और उनके गेटअप में प्रधानमंत्री की वायरल फ़ोटो से बीजेपी ने अपने बंगाली अस्मिता की राजनीति का आगाज कर दिया है। क्या बंगाली नवजागरण और गुरुदेव की विरासत पर बीजेपी का दावा चुनावी है? विश्व भारती के संदर्भ में ही इस दावे की पड़ताल की जा सकती है।

भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के ख़िलाफ़ शुरू हुए स्वाधीनता आंदोलन के दरम्यान भारत की दुर्दशा के कारणों की पड़ताल की जा रही थी। ज़्यादातर अभिजात बौद्धिक तबक़े ने राजनीतिक व्याधियों को पराधीनता का कारण माना। इसके बरक्स रवींद्रनाथ टैगोर सामाजिक और आर्थिक समस्याओं को भारत की दुर्दशा का कारण मानते हैं। इससे भी ज़्यादा महत्वपूर्ण है कि टैगौर बहुजन नायकों की तरह भारत की सामाजिक और आर्थिक व्याधियों के लिए बुनियादी शिक्षा के अभाव को दोषी मानते हैं। उनके शब्दों में,

‘मेरे विचार में तो भारत की छाती पर जो दुखों की मीनार खड़ी है, उसकी जड़ें केवल शिक्षा के अभाव में जमी हुई हैं। जातीय विभाजन, धार्मिक टकराव, कार्य विमुखता और नाजुक आर्थिक परिस्थितियाँ; ये सभी इसी एक कारक की देन हैं।’

आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिए गाँधी द्वारा चरखा चलाने के आह्वान की आलोचना करते हुए टैगोर ने कहा, “भारत का भविष्य शिक्षा पर ही निर्भर करता है, चरखा चलाने के ‘महान’ त्याग पर नहीं।”

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