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समान नागरिक संहिता क्यों नहीं बनाती मोदी सरकार?

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बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय ने 16 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में समान तलाक़ संहिता के लिए एक याचिका दायर की है। कोर्ट ने इस संबंध में सरकार से राय मांगी है। स्मरणीय है कि इसके पहले सुप्रीम कोर्ट समान नागरिक संहिता लागू करने के बारे में सरकार को विचार करने के लिए कह चुका है। 1985 में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश वाई. वी. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने शाहबानो मामले में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) की ज़रूरत को रेखांकित किया था। 1995 में सरला मुद्गल विवाद में पुनः सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से यूसीसी पर पहल करने का आग्रह किया था। विधि आयोग 2016 में समान नागरिक संहिता के लिए समाचार पत्रों में इश्तहार देकर 16 बिंदुओं पर आम लोगों से राय मांग चुका है। लेकिन समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर सरकार की तरफ़ से अभी तक कोई विशेष पहल नहीं हुई है।

बीजेपी के एजेंडे में राम मंदिर, धारा 370 के साथ समान नागरिक संहिता प्रमुख मुद्दा रहा है। लगता है कि मोदी सरकार धीरे-धीरे इस क़ानून को लागू करने की दिशा में आगे बढ़ रही है। दरअसल, अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर याचिका इसका ट्रायल है। याचिका के एक दिन बाद ट्विटर पर ‘वन नेशन, वन लॉ’ ट्रेंड करता रहा। ज़ाहिर है कि यह पहल भी बीजेपी के आईटी सेल द्वारा हुई है। ऐसे में एक सवाल है। क्या मोदी सरकार समान नागरिक संहिता लागू करने में हिचक रही है?

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