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पाकिस्तान में मंदिर ढहाया, उल्टे टंगे जिन्ना के सपने

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पाकिस्तान के खैबर-पख्तूनख्वाह प्रांत में एक कृष्ण मंदिर को भीड़ ने ढहा दिया। उस भीड़ को भड़काया मौलाना मोहम्मद शरीफ ने, जिसका कहना था कि किसी मुसलिम देश में मंदिरों को ढहाना तो पुण्य-कर्म है। ‘जमीयते उलेमा इस्लाम’ के इस नेता के साथ गए लगभग एक हज़ार लोगों ने इस मंदिर को ढहाते वक़्त सोचा होगा कि उनके इस कारे-सवाब (पुण्य कर्म) पर पाकिस्तान की सरकार उनकी पीठ ठोकेगी लेकिन पाकिस्तान के उस सीमांत प्रांत की पुलिस ने दर्जनों लोगों को गिरफ्तार कर लिया है और 350 लोगों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की है।

पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने स्वयं इस कुकर्म का संज्ञान लिया है और अब आतंकवाद-विरोधी क़ानून के तहत इन पर मुक़दमा भी चलेगा। खैबर-पख्तूनख्वाह के मुख्यमंत्री ने उस मंदिर के पुनर्निमाण की घोषणा की है और यह भी कहा है कि इस्लाम किसी के भी पूजा-स्थल को ध्वस्त करने की इजाज़त नहीं देता। पाकिस्तान के नेताओं की इस तरह की घोषणाओं का महत्व क्या है? आम जनता तो जाक़िर नाइक जैसे मौलानाओं के फतवों को सही मानती है। नाइक ने मलेशिया में बैठे हुए बयान जारी किया है कि किसी इस्लामी देश में मंदिर वगैरह होने ही नहीं चाहिए।

इस मूर्खतापूर्ण ख़्याल को अमली जामा पहनाने के लिए अनेक मुसलिम बादशाहों और आक्रांताओं ने भारत, अफ़ग़ानिस्तान तथा एशिया और यूरोप के कई देशों में मंदिरों और गिरिजाघरों को तबाह किया है लेकिन उनसे कोई पूछे कि यदि यही नियम अन्य मजहबों के लोग मसजिदों और दरगाहों पर लागू कर दें तो कैसा रहेगा? क्या एशिया, यूरोप और अमेरिकी महाद्वीप के ज़्यादातर देशों में कोई मसजिद बच पाएगी?

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