अरविंद केजरीवाल चौथी बार? सिर्फ ये 2 सर्वे बनवा रहे AAP की सरकार; BJP पर क्या अनुमान
1 min read
Symbol image: The words Breaking News on an abstract background
Delhi Exit Polls: दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए एग्जिट पोल्स आने लगे हैं। अब तक 8 एग्जिट पोल्स में भाजपा की बंपर जीत का अनुमान जताया गया है। पी-मार्क, चाणक्य स्ट्रेटजीज, मैटराइज और पीपल्स इनसाइट समेत ज्यादातर सर्वे में भाजपा को स्पष्ट बहुमत दिया गया है। लेकिन अब तक महज दो सर्वे ने आप की जीत का अनुमान जताया है। Mind Brink और वीप्रेसिड के सर्वे में आम आदमी पार्टी की चौथी बार लगातार सरकार बनने का अनुमान जताया गया है। Mind Brink एग्जिट पोल के अनुसार अरविंद केजरीवाल 44 से 49 सीटें पाकर फिर सत्ता में लौटेंगे, जबकि भाजपा पहले के मुकाबले काफी सीटें जीतकर विपक्ष में ही रहेगी। अनुमान है कि भाजपा को 25 से 29 सीटें मिल सकती हैं, जबकि कांग्रेस जीरो या एक पर ही टिक जाएगी।
वहीं वीप्रेसिड के एग्जिट पोल ने भी AAP की जीत का अनुमान लगाया है। इसके मुताबिक, AAP की सीटों की संख्या 46-52 के बीच रहने का अनुमान है, जबकि भाजपा को 18-23 सीटें मिलने का अनुमान है। इसके अनुसार कांग्रेस को केवल एक सीट मिलेगी। अब तक आए सभी पोल्स की तुलना में ये एग्जिट पोल चौंकाने वाले हैं। ऐसे में 8 फरवरी को आने वाले नतीजों के दिन सभी की नजर इन सर्वे पर रहेगी कि अन्य लोग सही साबित होते हैं या लीक से हटकर अनुमान जाहिर करने वाले Mind Brink और वीप्रेसिड सर्वे सही निकलते हैं।
यह सर्वे इसलिए भी चौंकाने वाले हैं क्योंकि अब तक जितने भी लोगों ने आंकड़े जाहिर किए हैं, सभी में भाजपा को स्पष्ट बहुमत की बात कही गई है। हां, फलोदी सट्टा बाजार ने जरूरी भाजपा और AAP के बीच टाइट फाइट की बात कही है। उसका कहना है कि दोनों दलों को 34-34 सीटें मिल सकती हैं। वहीं कांग्रेस या अन्य दो पर ही सिमट जाएंगे।
दिलचस्प बात यह है कि इस बार कई बड़ी एजेंसियों ने एग्जिट पोल से ही दूरी बना ली है। बता दें कि हरियाणा विधानसभा चुनाव में सभी एग्जिट पोल्स ने कांग्रेस के आने की भविष्यवाणी की थी, लेकिन जब नतीजों में भाजपा आई तो अनुमानों पर सवाल लगे। यही नहीं बाद में महाराष्ट्र चुनाव के ऐलान के वक्त चुनाव आयोग ने भी सर्वे एजेंसियों पर सवाल उठाए थे। माना जा रहा है कि इस तरह से रुझानों पर सवाल उठने और विश्वसनीयता पर प्रश्न लगाने के चलते एजेंसियों ने अपने पैर पीछे खींचे हैं।