मक्का और मदीना में लगे पत्थर भीषण गर्मी में भी क्यों रहते हैं ठंडे; कहां से आते हैं
1 min readमक्का और मदीना की मस्जिदों में लगे सफेद मार्बल पत्थर बेहद खास हैं। ये पत्थर बेहद ठंडे रहते हैं और भीषण गर्मी का भी इस पर कोई खास असर नहीं होता है। इनका दशकों से इस्तेमाल हो रहा है।
हर साल मक्का और मदीना की यात्रा पर दुनिया भर से करोड़ों लोग जाते हैं। प्रचंड गर्मी के दिनों में भी भारी भीड़ जुटती है, लेकिन यहां मस्जिदों और परिसर में लगे सफेद मार्बल पत्थरों के चलते लोगों को पैदल चलने में समस्या नहीं होती। भीषण गर्मी के दिनों में भी ये मार्बल पत्थर कूल-कूल रहते हैं। ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि इन मार्बल पत्थरों में ऐसी क्या खासियत है कि तपती गर्मी में भी इनमें ठंडक रहती है। कुछ लोग दावा करते हैं कि पानी के पाइप नीचे बिछाए गए हैं और उनमें ठंडे पानी का प्रवाह बना रहता है, जिससे ठंडक रहती है।
लेकिन मक्का और मदीना की मस्जिदों के पत्थरों में ठंडक की ऐसी कोई वजह नहीं है। इसकी वजह इन पत्थरों की खासियत ही है। ये खास पत्थर एजियन सागर में पाए जाते हैं। इनकी खासियत यह है कि ये बेहद चमकदार होते हैं और चमकीले होते हैं। इन्हें बर्फीले सफेद मार्बल भी कहा जाता है, जो बर्फ से चमकदार और सफेद होते हैं। इनकी बड़ी विशेषता है कि ये गर्मी अवशोषित नहीं करते। इसी के चलते किसी भी मौसम में ठंडे बने रहते हैं और खासतौर पर गर्मी के मौसम में लोगों को इनसे बड़ी राहत मिलती है।
यूनान में सदियों से हो रहा इन पत्थरों का इस्तेमाल
यूनान में इन पत्थरों को लंबे समय से इस्तेमाल किया जाता रहा है। सदियों से इसका इस्तेमाल उन इलाकों में खासतौर पर होता रहा है, जहां भीषण गर्मी पड़ती है। इस्ताम्बुल की हागिया सोफिया मस्जिद को भी इन्हीं पत्थरों से तैयार किया गया था। इसके अलावा भी कई ऐतिहासिक इमारतों को इन पत्थरों के इस्तेमाल से ही बनाया गया है। हालांकि इसकी कीमत बहुत अधिक है। यही वजह है कि कोई आम आदमी अपने घर में इन्हें नहीं यूज कर सकता। एक मार्बल कंपनी के मुताबिक इसका दाम 250 से 400 डॉलर प्रति वर्ग मीटर तक है।
55 डिग्री तक तापमान में भी नहीं होते गर्म
दशकों से सऊदी अरब इन पत्थरों का आयात करता रहा है। इन मस्जिदों में पत्थरों का इस्तेमाल इसलिए भी अहम है क्योंकि यहां लोगों को नंगे पांव ही चलना होता है और उन्हें गर्मी में खासी परेशानी हो सकती है। उससे बचने के लिए ही इन पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है। मक्का और मस्जिदों के रखरखाव से जुड़े अधिकारी फारस अल सईदी ने कहा कि ये पत्थर ऐसे हैं कि तापमान 50 या 55 डिग्री तक पहुंच जाए तो भी इनमें गर्मी का ज्यादा असर नहीं होता है।