Prakash veg

Latest news uttar pradesh

लिव-इन रिलेशनशिप और समलैंगिक रिश्ते भी परिवार, सुप्रीम कोर्ट की बेहद अहम टिप्पणी

1 min read

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पारिवारिक संबंध घरेलू, अविवाहित सहजीवन या समलैंगिक रिश्ते के रूप में भी हो सकते हैं। साथ ही अदालत ने उल्लेख किया कि एक इकाई के तौर पर परिवार की ‘असामान्य’ अभिव्यक्ति उतनी ही वास्तविक है जितनी कि परिवार को लेकर पारंपरिक व्यवस्था। यह भी कानून के तहत सुरक्षा का हकदार है। कोर्ट ने कहा कि कानून और समाज दोनों में परिवार की अवधारणा की प्रमुख समझ यह है कि’ इसमें एक मां और एक पिता (जो संबंध समय के साथ स्थिर रहते हैं) और उनके बच्चों के साथ एक एकल, अपरिवर्तनीय इकाई होती है।

जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस ए एस बोपन्ना की पीठ ने एक आदेश में कहा, ‘यह धारणा दोनों की उपेक्षा करती है, कई परिस्थितियां जो किसी के पारिवारिक ढांचे में बदलाव ला सकती हैं। यह तथ्य कि कई परिवार इस अपेक्षा के अनुरूप नहीं हैं। पारिवारिक संबंध घरेलू, अविवाहित सहजीवन या समलैंगिक संबंधों का रूप ले सकते हैं।’ एससी की टिप्पणियां अहम हैं। 2018 में समलैंगिकता को शीर्ष अदालत की ओर से अपराध की श्रेणी से बाहर किया गया था। इसके बाद से ही कार्यकर्ता एलजीबीटी के लोगों के विवाह और सिविल यूनियन को मान्यता देने के साथ-साथ लिव-इन जोड़ों को गोद लेने की अनुमति देने के मुद्दे को उठा रहे हैं।

जैविक बच्चे के लिए मातृत्व अवकाश से जुड़ा मामला
शीर्ष अदालत ने एक फैसले में यह टिप्पणी की कि एक कामकाजी महिला को उसके जैविक बच्चे के लिए मातृत्व अवकाश के वैधानिक अधिकार से केवल इसलिए वंचित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि उसके पति की पिछली शादी से दो बच्चे हैं और उसने उनमें से एक की देखभाल के लिए छुट्टी का लाभ उठाया था। न्यायालय ने कहा है कि कई कारणों से एकल माता-पिता का परिवार हो सकता है। यह स्थिति पति या पत्नी में से किसी की मृत्यु हो जाने, उनके अलग-अलग रहने या तलाक लेने के कारण हो सकती है।

0Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published.

https://slotbet.online/