अखिलेश यादव बनाने लगे 2024 का प्लान, भाजपा से टक्कर को 2022 के फॉर्मूले पर ही काम
1 min readसपा ने संकेत दिए हैं कि वह 2022 के ही फॉर्मूले पर चुनाव में उतरेगी। यानी इस बार भी बसपा और कांग्रेस से गठबंधन नहीं करेगी। अखिलेश यादव को लगता है कि बसपा और कांग्रेस जैसे दल वोट ट्रांसफर नहीं करा पाते।
लोकसभा चुनाव 2024 में अब सवा साल का ही वक्त बचा है और सभी दलों ने तैयारियां तेज कर दी हैं। सबसे ज्यादा हलचल उत्तर प्रदेश को लेकर तेज है, जहां भले ही कांग्रेस और बसपा ज्यादा ऐक्टिव नहीं हैं। लेकिन सत्ताधारी दल भाजपा और मुख्य विपक्षी पार्टी सपा ने तैयारियां तेज कर दी हैं। इस बीच सपा ने संकेत दिए हैं कि वह 2022 के ही फॉर्मूले पर चुनाव में उतरेगी। यानी समाजवादी पार्टी इस बार भी बसपा और कांग्रेस से गठबंधन नहीं करेगी। बता दें कि सपा ने 2019 के आम चुनाव में बसपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और 5 सीटों पर जीत हासिल की थी। हालांकि बसपा ने 10 सीटें पाकर चौंका दिया था।
इन नतीजों के कुछ वक्त बाद ही सपा और बसपा की राहें अलग हो गई थीं, जो ढाई दशक के बाद साथ आए थे। सपा मुखिया अखिलेश यादव ने तब कहा था कि बसपा अपने वोट हमें ट्रांसफऱ नहीं करा पाई। यही नहीं इसी तरह 2017 के विधानसभा चुनाव में भी सपा को कांग्रेस से झटका लगा था। समाजवादी पार्टी ने तब 403 विधानसभा सीटों में से 100 कांग्रेस को दे दी थीं, लेकिन कांग्रेस सिर्फ 7 पर ही जीत हासिल की थी। इस पर कहा गया था कि सपा ने 100 सीटें कांग्रेस को देकर गलती कर दी थी। शायद यही वजह है कि 2017 और 2019 के चुनाव नतीजों से सबक लेते हुए सपा 2022 की रणनीति पर ही चलेगी।
इन सीटों पर सपा को मिल सकता है फायदा
इसकी वजह यह है कि सपा को रालोद, अपना दल कमेरावादी, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और महान दल से गठबंधन कर थोड़ा फायदा दिखा था। गाजीपुर, बहराइच जैसे सुभासपा की पकड़ वाले इलाकों में सपा को खासा फायदा हुआ। इसके अलावा मेरठ, मुजफ्फरनगर और बागपत जैसे रालोद वाले इलाकों में भी फायदा हुआ। ऐसे में सपा को लगता है कि छोटे दल ही वोट ट्रांसफर करा सकते हैं। उन्हें सीटें भी कम देनी पड़ती हैं। इस तरह सपा गठबंधन में अपरहैंड रखते हुए बड़ी सफलता हासिल करने पर फोकस कर सकती है।
यादव के अलावा कुर्मी और जाट बिरादरी को भी साथ लाने की कोशिश
सपा को लगता है कि छोटे दलों के साथ गठबंधन करने पर वह सहारनपुर, मेरठ, मुजफ्फरनगर, आजमगढ़, मऊ, प्रतापगढ़ जैसी सीटों पर वह फायदा पा सकते हैं। गौरतलब है कि अपना दल कमेरावादी के जरिए सपा की कोशिश कुर्मी वोटों को जोड़ने की है। इसके अलावा जाटों एवं अन्य समुदायों को भी सपा अपने साथ लाने की कोशिश में है। हालांकि कांग्रेस और बसपा के अलग से चुनाव लड़ने पर कई सीटों पर वोटों का बंटवारा भी होगा। साफ है कि फायदा भाजपा को ही ज्यादा होता दिख रहा है, लेकिन सपा ही उससे मुकाबला करने की स्थिति में होगी।