यूपी चुनाव: धार्मिक ध्रुवीकरण नहीं सामाजिक समीकरण साधने पर जोर, पहली लिस्ट से बीजेपी ने साफ कर दिए तेवर
1 min readउत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव (UP Assembly Elections 2022) की घोषणा के ठीक बाद एक दर्जन से ज्यादा नेताओं की बगावत से जूझ रही भाजपा ने अपनी पहली सूची से साफ कर दिया है कि वह किसी दबाव में अपनी रणनीति बदलने नहीं जा रही है। पार्टी ने अपने सभी प्रमुख नेताओं को चुनाव लड़ाने की रणनीति के तहत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को चुनाव मैदान में उतारने का ऐलान कर दिया है।
इसके साथ ही उसने अपनी सर्वस्पर्शी सूची में सभी वर्गों को साधने की कोशिश की है। इसमें पिछड़ों और दलितों को लेकर उसका रुझान भी नजर आया है। पार्टी ने एक सामान्य सीट से दलित उम्मीदवार को उतारकर इसके संकेत भी दिए हैं।
नहीं बदले जाएंगे बड़ी संख्या में चेहरे
उत्तर प्रदेश की चुनावी रणनीति में भाजपा को कुछ नेताओं के जाने से झटका जरूर लगा है, लेकिन इससे वह बहुत ज्यादा चिंतित नहीं है। पार्टी की पहली सूची से भी यह साफ हो जाता है। हालांकि इतना असर जरूर पड़ा है कि पार्टी जहां पहले सरकार विरोधी माहौल को थामने के लिए बड़ी संख्या में चेहरे बदलने की तैयारी में थी, अब उतने चेहरे नहीं बदले जाएंगे। उसके कई प्रमुख नेता जिन पर टिकट कटने का खतरा मंडरा रहा है, फिर से टिकट पा गए हैं। जिन विधायकों के टिकट काटे हैं, अधिकांश की जगह पर उसी समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले नेताओं को ही उतारा गया है। दलित समुदाय को संदेश देने के लिए पार्टी ने एक सामान्य सीट पर भी दलित को टिकट दिया है। पार्टी पहले भी इस तरह के प्रयोग करती रही है।
गौरतलब है कि केंद्र और राज्य सरकार लगातार पिछड़ा, दलित, गरीब, वंचित समुदाय को अपने केंद्र में रखकर काम कर रही है और गरीब कल्याण योजनाओं को ज्यादा तवज्जो दे रही है। उस की विभिन्न योजनाओं घर घर बिजली, गैस सिलेंडर, आयुष्मान योजना, कोरोना काल में गरीबों को मुफ्त अनाज, छोटे किसानों के खातों व महिलाओं खाते में पैसा भेजना, ऐसी योजनायें है जो सीधे तौर पर अधिकांश पिछड़े और दलित समुदाय को ज्यादा लाभ पहुंचाती हैं। ऐसे में पार्टी की रणनीति पिछड़ा और दलित समुदाय पर ही केंद्रित करने की है।
मोदी सरकार की योजनाओं का मिलेगा लाभ?
यह बात भी साफ हो जाती है कि पार्टी छोड़ने वाले दर्जन भर से ज्यादा दलित और पिछड़ा वर्ग के नेताओं के जाने से पार्टी की रणनीति पर बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ा है। उसका मानना है कि इस समुदाय से जुड़े कुछ नेता भले ही चले गए हो, लेकिन यह वर्ग उसके साथ है और वह उसकी योजनाओं से लाभान्वित हुआ है। उसका समर्थन उसे मिलेगा ही।