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हिंदू ‘ऑटोमैटिक पैट्रीअट’ तो सिख, ईसाई, मुसलिम क्या हैं?

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वर्षारंभ पर एक नई अवधारणा का उपहार भारतीयों को दिया गया: ‘ऑटोमैटिक पैट्रीअट’। बताया गया कि हिंदू ‘ऑटोमैटिक पैट्रीअट’ होते हैं। यानी हिंदू होने का अर्थ ही ‘पैट्रीअट’ होना है। उसके लिए उसे कुछ अलग से करने की ज़रूरत नहीं होती। वह जीवन भर कुछ भी करता रहे, या न करता रहे, वह ख़ुद ही अपनी तिजोरी भरता रहे या दूसरों की जान लेता रहे, ‘पैट्रीअट’ वह बना रहेगा। दोनों भूमिकाओं में कोई विरोध नहीं है। यह क्या हिंदू की परिभाषा है या उसकी विशेषता? तो फिर ‘पैट्रीअट’ के आगे हिंदू लगाना शब्द का अपव्यय है नहीं?

लेकिन हिंदू तो सिर्फ़ उस भूभाग में नहीं पाए जाते जिसे भारत कहते हैं। ईश्वर की कृपा से वे अफ्रीका, अमरीका, कनाडा, इंग्लैंड तमाम जगह पाए जाते हैं यहाँ तक कि बावजूद सारी हिंसा के पाकिस्तान में भी। और वहाँ वे फल फूल रहे हैं। यहाँ तक कि मंत्री और राष्ट्र प्रधान तक बनाए जा रहे हैं। और उन देशों की ‘मूल’ जनता उनकी इस तरक्की पर स्यापा नहीं करती। एक प्रीति पटेल या ऋषि सुनाक के मंत्री बनने से उस देशपर कोई ख़तरा नहीं आ जाता।

तो वे हिंदू किसके ‘पैट्रीअट’ हैं? क्या वे इन देशों के लिए भी ‘पैट्रीअट’ हैं या सिर्फ़ भारत के? एक अमरीकी हिंदू अमरीकी ‘पैट्रीअट’ है या नहीं? वह अमरीका का पैट्रीअट है या भारत का? यह दुविधा भारत में पैदा हुए और अमरीका में बस गए लोगों के लिए तो हो सकती है लेकिन जो हिंदू वहीं पैदा हुए, जिन्होंने वहीं के पतझड़ के रंग देखे, उनका भारतीयता से क्या रिश्ता होगा?

यह बताने के बाद कि हिंदू स्वभावतः ‘पैट्रीअट’ होता है, स्पष्ट किया गया कि हिंदू भारत का विरोधी हो ही नहीं सकता। तो कहनेवाले के मन में हिंदू और भारत का अन्योन्याश्रय संबंध है। जैसा हमने पहले कहा, क्या अलग-अलग देशों के हिंदूवासियों का भारत से संबंध ऐसा ही है? ऐसा कहनेवाले के मन में शायद यह भाव हो कि हिंदुओं की मूल भूमि तो भारत ही है, इससे उनका जीवन के लिए ऊर्जा पाना स्वाभाविक ही नहीं उचित भी है। इसका मतलब यह कि आपकी पुण्य भूमि आपके आज के देश से अलग भी हो सकती है। इस प्रकार के संबंध लाभ की छूट क्या सिर्फ़ हिंदुओं को है या अन्यों को भी?

हिंदू भारत का विरोधी नहीं हो सकता, यह वाक्य भी अनावश्यक है। या इस वाक्य में जो कहा जा रहा है, उससे कहीं अधिक प्रबल ध्वनि उसकी है जो कहा नहीं गया। यानी जितने विश्वास से यह बात हिंदुओं के बारे में कही जा रही है, उतने ही यक़ीन से किसी हिंदुओं से इतर धर्मावलंबियों के विषय में कहना संभव नहीं है? वरना कहा जाता कि कोई, जो मनुष्य है, भारत का विरोधी नहीं हो सकता।

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