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ओपेक क्यों नहीं घटा रहा कच्चे तेल के आसमान छूते दाम?

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दुनियाभर में तेल के दामों को कम करने की मांग के बीच दुनिया के सबसे बड़े निर्यातक देशों की पाँच मई को मिलने वाले हैं.

लेकिन तेल उत्पादक देशों का समूह ओपेक प्लस फ़िलहाल मदद करने की जल्दबाज़ी में नहीं है. ओपेक प्लस देशों में रूस भी शामिल है.

ओपेक

ओपेक प्लस क्या है?

23 तेल निर्यातक देशों के समूह को ओपेक प्लस कहा जाता है. हर महीने विएना में ओपेक प्लस देशों की बैठक होती है. इस बैठक में ये निर्णय किया जाता है कि अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कितना कच्चा तेल देना है.

इस समूह के मूल में ओपेक (ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ़ ऑयल एक्सपोर्टिंग कंट्रीज़) के 13 सदस्य हैं, जिनमें मुख्य तौर पर मध्य पूर्वी और अफ़्रीकी देश हैं. इसका गठन सन 1960 में उत्पादक संघ के तौर पर हुआ था. इसका मक़सद दुनियाभर में तेल की आपूर्ति और उसकी कीमतें निर्धारित करना था.

तेल कीमतें

साल 2016 में, जब तेल की कीमतें कम थीं, ओपेक ने 10 गैर-ओपेक तेल उत्पादक देशों के साथ मिलकर ओपेक प्लस बनाया.

इनमें रूस भी शामिल है, जो हर दिन करीब 1 करोड़ बैरल तेल का उत्पादन करता है.

दुनिया भर के कुल कच्चे तेल का तकरीबन 40 फ़ीसदी हिस्से का उत्पादन ये सब देश मिलकर करते हैं.

एनर्जी इंस्टीट्यूट की केट दूरियान कहती हैं, “ओपेक प्लस बाज़ार को संतुलित रखने के लिए तेल की आपूर्ति और उसकी मांग को अनुकूल बनाता है. जब तेल की मांग में गिरावट आती है तो वे आपूर्ति कम कर के इसकी कीमतें ऊंची रखते हैं.”

ओपेक प्लस बाज़ार में अतिरिक्त तेल देकर इसकी कीमतें कम भी कर सकते हैं, जो कि अमेरिका, ब्रिटेन से बड़े आयातक देश इससे उम्मीद भी करते हैं.

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